Saturday, 10 October 2009

अपना रास्ता ख़ुद तय करने में भरोसा - सुशील सिंह


भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में अगर अगर अभिनेताओ की बात की जाए तो ऐसे कम ही अभिनेता हैं जिनकी पहचान उनके अभिनय से होती है। सुशील सिंह उन्ही अभिनेताओ में से एक हैं। इ टीवी द्बारा सर्वाधिक लोकप्रिय खलनायक का पुरस्कार पा चुके सुशील सिंह नें खलनायकी को अलविदा कर नायकी के क्षेत्र में कदम रख दिया है। भोजपुरी की अब तक की सबसे चर्चित फ़िल्म मुन्ना बजरंगी के मुन्ना खान का एक नया अंदाज़ अब जल्द ही देखने को मिलेगा फ़िल्म हम हैं मुन्ना भैया में। भोजपुरी फ़िल्म जगत में एक्शन की नई परिभाषा गढ़ने जा रही इस फ़िल्म के एक खतरनाक दृश्य फिल्माए जाने के बाद सुशील सिंह से विस्तृत बातचीत हुई , प्रस्तुत हैं कुछ अंश -

हम हैं मुन्ना भइया के इन खतरनाक दृश्य के लिए आपने डुप्लीकेट का सहारा क्यों नही लिया ?
निर्देशक इकबाल बख्श ने फ़िल्म के सारे दृश्यों पर काफ़ी मेहनत की है और इसके लिए मुझे मानसिक रूप से तैयार भी कराया है। आप देख ही रहे हैं ऐसे एक्शन दृश्य कभी कभार ही देखने को मिलते हैं। जहाँ तक डुप्लीकेट की बात है तो मैं यही कहूँगा - मुझे अपना रास्ता ख़ुद तय करने पर भरोसा है, मेरी पहचान मेरे अभिनय से है , इसलिए रिस्क लेना मैं ज्यादा पसंद करता हूँ।
मुन्ना बजरंगी के मुन्ना खान, कबहू छुटे ना ई साथ वाला भावुक इंसान और हम हैं मुन्ना भइया के टपोरी में से कौन आपके करीब है?
निजी जिन्दगी में मैं कबहू छुटे ना ई साथ वाला इंसान हूँ जो सबके बारे में सोचता है, लेकिन फिल्मी परदे वाला इंसान मेरे किरदार का हिस्सा होता है और उसे जीवंत बनाने के लिए उसमे डूब जाता हूँ। आपने खटाई लाल मिठाई लाल वाला इंसपेक्टर का मेरा किरदार देखा होगा, इसके अलावा जल्द ही एक अन्य फ़िल्म में आप मुझे एक अनोखे अंदाज़ में देखेंगे। उस फ़िल्म में रवि किशन मेरे साथ हैं। जल्द ही फ़िल्म की शूटिंग शुरू हो रही है।

भोजपुरी में पहली बार किसी खलनायक ने नायक का सफर तय किया है..कैसा अनुभव रहा ?
मैं एक अभिनेता हूँ और मेरा मानना है की उसे किसी दायरे में बाँध कर नही रहना चाहिए, बल्कि उसे अभिनय के हर क्षेत्र में पारंगत होना चाहिए, और हर तरह की भूमिका करना चाहिए। भोजपुरी फिल्मो में यह नई बात है लेकिन हिन्दी फिल्मो में शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना ऐसा कर चुके हैं।

अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और फिल्मो में आगमन के बारे में बताइए ?
मैं मूलतः बनारस का रहने वाला हूँ और संयुक्त परिवार का हिस्सा हूँ। मेरे पिताजी डॉक्टर गुलाब सिंह पेशे से चिकित्सक हैं। अपना होटल और डेयरी का भी व्यवसाय है । जहाँ तक फिल्मो में आगमन की बात है तो मैं इसे संयोगवस ही मानता हूँ। गरमी की छुट्टियों में मुंबई आया था, फिल्मो के प्रति लगाव तो बचपन से ही था और इत्तेफाक से सोनी टीवी के धारावाहिक आहट में मुझे काम मिल गया । मेरी पहली फ़िल्म आंच थी, जो मुझे लेखक कमलेश पांडे के सहयोग से मिली थी। भोजपुरी फिल्मो में आगमन का श्रेय मैं सुशील उपाध्याय को देता हूँ। वे अपनी फ़िल्म कन्यादान के लिए लोकेशन देखने बनारस आए थे, वहीँ उनसे मुलाकात हुई और भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में बतौर खलनायक मेरा आगमन हुआ।

किस तरह की भूमिका करने की चाहत है ?
जिस तरह हिन्दी फिल्मो में अजय देवगन और नाना पाटेकर की छवि है , कुछ वैसी ही भूमिका और छवि की बदौलत भोजपुरी फ़िल्म जगत में अपनी छाप छोड़ना चाहता हूँ।

दुनिया हिला दी पर .......,



१६ फरबरी १९६२ को आज की भोजपुरी फ़िल्म जगत का सबसे एतिहासिक दिन था, क्योंकि इसी दिन पहली भोजपुरी फ़िल्म गंगा मईया तोहे पियरे चढैबो का मुहूर्त हुआ था पटना के शहीद स्मारक के नीचे। तब से लेकर आज तक भोजपुरी फ़िल्म जगत को अनेक बदलाव से जूझना पड़ा है। कभी कामगारों की फ़िल्म कही जाने वाली भोजपुरी आज न सिर्फ़ नेशनल अवार्ड पा चुकी है बल्कि इसका डंका चारो दिशाओ में बज रहा है । कभी बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के बाज़ार को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली भोजपुरी फ़िल्म आज बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश की सीमा से निकल विदेश की धरती पर भी अपना झंडा गाड़ने में सफल रही है। बात अगर मायानगरी मुंबई की की जाए तो आज बिहार के बाद भोजपुरी फिल्मो का सबसे बड़ा बाज़ार मुंबई ही है। १९८४ में बनी फ़िल्म गंगा किनारे मोरा गाँव से लेकर आज तक मुंबई में भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज ने काफ़ी तरक्की की है। 1963 में बिहार के एक व्यवसाई विश्वनाथ शाहाबादी की फिल्म गंगा मइया तोहें पियरी चढैबो से भोजपुरी सिनेमा की शुरूआत होती हैं और इस फ़िल्म के प्रेरणा श्रोत थे देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद । हालांकि 20वीं सदी के पांचवें दशक में भोजपुरी क्षेत्र के कई लेखक कवि कलाकार बम्बई फिल्म उद्योग में सक्रिय थे और इन भोज्पुरियो को अपने देश, गांव-जवार की बड़ी याद सताती थी। लेकिन इस भाषा में फ़िल्म बने इसका ख्याल किसी को नही आया। कहा जाता है की विश्नाथ शाहाबादी बड़े बैग में ढेर सारा रुपया लेकर मुंबई आए और दादर में वे प्रीतम होटल में ठहरे जो पुरबियों का अड्‌डा था यहीं उनकी मुलाकात नजीर हुसैन से हुई जो वर्षों से एक पटकथा तैयार करके भोजपुरी फिल्म बनाने की जुगत में थे और इस तरह जनवरी 1961 में नजीर हुसैन के नेतृत्व में गंगा मइया तोहें पियरी चढ़इबो के निर्माण की योजना बनी। फिल्म का निर्देशन बनारस के कुंदन कुमार को सौंपा गया। बनारस के ही रहने वाले कुमकुम और असीम को फिल्म में नायिका और नायक बनाया गया। संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी चित्रगुप्त को दी गई । 1963 में यह फिल्म प्रदर्शित हुई और बेहद सफल हुई। इसके बाद तो इसका सिलसिला ही शुरू हो गया। मुंबई में पहली भोजपुरी फ़िल्म जिस सिनेमाघर में लगी वो थी मिनर्वा और फ़िल्म थी १९८४ में बनी गंगा किनारे मोरा गाँव । आश्चर्यजनक रूप से यह फ़िल्म लगातार चार सप्ताह तक चली और इस तरह मुंबई में भोजपुरी फिल्मो का द्वार खुल गया। इसके बाद लगातार कई फिल्में आई और अपनी मौजूदगी का अहसास कराती रही, लेकिन भोजपुरी फ़िल्म जगत पर आए संकट के बादल ने मुंबई को भोजपुरी फिल्मो से महरूम कर दिया। लंबे अरसे तक मुंबई में कोई भी भोजपुरी फिल्में रिलीज़ नही हुई। साल २००३ में विश्वनाथ शाहाबादी के भांजे मोहनजी प्रसाद ने हिन्दी फिल्मो में अच्छा ब्रेक पाने की तलाश में भटक रहे जौनपुर के छोरा रविकिशन को लेकर सैयां हमार नाम की एक फ़िल्म बनाकर भोजपुरी फ़िल्म जगत के अब तक के स्वर्णिम युग की शुरुवात की । कुछेक लाख में बनी इस फ़िल्म ने काफी अच्छा व्यवसाई किया। मोहन जी और रवि किशन की इस जोड़ी ने लगातार चार हिट फिल्मे दी। इसी कड़ी को आगे बढाया 2005 में प्रदर्शित फिल्म ससुरा बड़ा पइसा वाला ने । इस फ़िल्म ने भोजपुरी फ़िल्म जगत से जुड़े लोगो को एहसास दिलाया की लोकसंगीत से जुड़े लोग भी अभिनेता बन सकते हैं। उस समय गायकी में मनोज तिवारी मृदुल का डंका बज रहा था, और दर्शको ने ससुरा बड़ा पैसे वाला को हाथो हाथ उठा लिया और मनोज तिवारी रातो-रात लोगो के चहेते बन गए। फ़िर तो बिहार उत्तरप्रदेश के गायकों की भीड़ सी लग गई, लेकिन किस्मत चमकी तो सिर्फ़ दिनेश लाल यादव निरहुआ की। सिर्फ़ पाँच साल पहले तक मात्र ५ हजार के मेहनाता पर गाने वाला निरहुआ अगर आज किसी फ़िल्म के एवज में ३० लाख रूपये मेहनाता लेता है तो इसे भोजपुरी फ़िल्म जगत की ऊंचाई ही कह सकते हैं। आज भले ही मनोज तिवारी फ़िल्म निर्माताओ की पसंद नही हैं लेकिन उन्होंने जो सिलसिला शुरू किया था उसमे कई लोग नाम कम रहे हैं। आज के भोजपुरी के सबसे लोकप्रिय लोक गायक पवन सिंह, गुड्डू रंगीला, छोटू चलिया, सहित दर्जनों ऐसे गायक हैं जो बतौर अभिनेता काम कर रहे हैं। मल्टिप्लेक्स के इस दौर में अगर आज सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर फल फूल रहे हैं तो इसका श्रेय भोजपुरी फिल्मो को ही जाता है । आज हालत ये है की महाराष्ट की इस धरती पर भोजपुरी सिनेमा ने मराठी फिल्मो को भी पीछे छोड़ दिया है । आपको जानकर आश्चर्य होगा की मुंबई में भोजपुरी फिल्मो का बाज़ार मराठी फिल्मो से कई गुना अधिक है। आज मुंबई के लगभग २० सिनेमा घरो में भोजपुरी फिल्मे प्रर्दशित होती है। कई मल्टीप्लेक्स भी अब भोजपुरी फिल्मो का प्रदर्शन कर रहे हैं। मुंबई में बसे भोजपुरी भाषी का यह अपनी भाषा के प्रति प्यार ही है की आज फ़िल्म निर्माता उत्तरप्रदेश की तुलना में मुंबई से कहीं अधिक कमाई कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में रोचक तथ्य यह है की मुंबई में बसे पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगो की तुलना में बिहार के लोग अधिक संख्या में भोजपुरी फ़िल्म देखते है और धीरे धीरे उत्तरप्रदेश के लोगों का रुझान भी भोजपुरी फ़िल्म को लेकर काफ़ी बढ़ रहा है। यह रुझान भोजपुरी फ़िल्म जगत के लिए एक शुभ संकेत है।

सवाल उठता है इतना विशाल इंडस्ट्रीज बनने के वावजूद आज भी भोजपुरी फ़िल्म जगत को वो सम्मान हासिल क्यों नही हो पाया है जिसकी वो हकदार है ? अगर गहराई से पड़ताल तो मामला साफ़ हो जाता है। आज भोजपुरी जगत स्तरीय फिल्मो से दूर हो गया है, पैसे कमाने की चाहत में फ़िल्म निर्माताओ ने ऐसे वर्ग के दर्शको के लिए फिल्मे बनानी शुरू कर दी है जो अश्लीलता देखना ज्यादा पसंद करते हैं। कई कारपोरेट कंपनिया यहाँ आई लेकिन निर्माताओ और वितरकों की मिलीभगत ने उन्हें कहीं का नही छोड़ा । इसके अलावा आपसी गुटवाजी भी यहाँ बहुत है। पूरी इंडस्ट्रीज अलग अलग गुटों में बँटा है। हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में भी गुटवाजी है, लेकिन इसका असर उनके काम पर नही होता है। यहाँ तो एक दूसरे को नीचा दिखने के चक्कर में लोग अपनी फिल्मो को भी दाव पर लगा देते हैं। इसलिए ये कहा जा सकता है की भोजपुरी फिल्मो ने दुनिया हिला तो दी.....पर औकात छोटी ही रही।
बहरहाल भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज का आज का दौर काफ़ी अच्छा है , लाखो लोग इस इंडस्ट्रीज से अपनी जीविका चला रहे हैं। बरसो पहले जो पौधा लगाया गया था और सालो से मुरझाया था आज विशाल बट वृक्ष बन गया है।
गीतेश पाण्डेय

असलम शेख का नया धमाका



भोजपुरी फिल्मो के सबसे चर्चित निर्देशक असलम शेख अब लेकर आ रहे हैं राम अवतार । भोजपुरी सुपर स्टार रविकिशन अभिनीत इस फ़िल्म से उन्होंने एक नया चेहरा जुबेर खान को भी लॉन्च किया है। दूर्वा प्रोडक्शन के बैनर तले निर्मात्री विजल राजदा की इस फ़िल्म का एतिहासिक मुहूर्त हाल ही में किया गया। अँधेरी के ट्रियो स्टूडियो में इस मौके पर पूरी भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज मौजूद थी। रवि किशन और निर्माता जीतेश दुबे ने नारियल तोड़ कर इसकी विधिवत शुरुवात की । इस अवसर पर अभिनेता दिनेश लाल यादव, ब्रिजेश त्रिपाठी, प्रवेश लाल यादव, निर्माता अभय सिन्हा, चंद्रशेखर राव, मधुसुदन मेहता, निर्देशक राज कुमार पांडे, जगदीश शर्मा, शंकर अरोडा, सोनू त्रिपाठी , अभिनेता समीर राजदा, संगीतकार धनन्जय मिश्रा, आदि उपस्थित थे। उल्लेखनीय है की असलम शेख और रविकिशन की जोड़ी ने इसके पूर्व विदाई जैसी सुपर हिट फ़िल्म दी है। यह फ़िल्म बिहार में पचास सप्ताह के बाद भी धूम मचा रही है। मुहूर्त के अवसर पर रविकिशन ने नए अभिनेता जुबेर खान की तारीफ़ की और कहा की भोजपुरी फ़िल्म जगत को ढेर सारे अच्छे अभिनेता की ज़रूरत है, जुबेर निः संदेह अपने अभिनय से भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में नाम कमाएगा। जुबेर खान ने भी आत्मविश्वास भरे स्वर में भरोसा जताया की वे रवि किशन की बधाई को व्यर्थ जाने नही देंगे।